रविवार, 7 अप्रैल 2019

बीएसएनएल को किस तरह से बर्बाद किया गया

यह बात सभी को पता है कि किस तरह से 4g स्पेक्ट्रम  BSNL को न देकर बाकी सब कंपनियों दिया गया..... सरकार की मंशा जियो को प्रमोट करने की थी और उसी को आगे बढाने के लिए बीएसएनएल को धीमा जहर दिया गया आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि रिलायंस को सिर्फ डेटा सर्विस के लिए लाइसेंस दिया गया था, लेकिन बाद में 40 हजार करोड़ रुपये की फीस की बजाय 1,600 करोड़ रुपये में ही वॉयस सर्विस का लाइसेंस दे दिया गया,

लेकिन जियो के पास इंफ्रास्ट्रक्चर का अभाव था और यही से सरकार ने बीएसएनएल के इंफ्रास्ट्रक्चर को धीरे धीरे जिओ को देना शुरू किया,  2014 में आते ही सरकार द्वारा एक टॉवर पॉलिसी की घोषणा की ओर दबाव डालकर रिलायंस जिओ इंफोकॉम लिमिटेड से भारत संचार निगम लिमिटेड के साथ मास्‍टर शेयरिंग समझौता करवा दिया इस समझौते के तहत रिलायंस जिओ बीएसएनएल के देशभर में मौजूद 62,000 टॉवर्स का उपयोग कर सकती थी इनमें से 50,000 में ऑप्टिकल फाइबर कनेक्टिविटी उपलब्ध थी

यह जिओ के लिए संजीवनी मिलने जैसा था क्योंकि वह चाहे कितना भी पैसा खर्च कर लेती इतना बड़ा इंफ्रास्ट्रक्चर नही खड़ा करती थी, लेकिन उसके लिए एक मुश्किल ओर थी BSNL भी उसके कड़े प्रतिद्वंद्वी में से एक था जिन्हें इन टॉवर से सिग्नल्स मिलते थे

इसलिए सरकार ने ग़जब का खेल खेला उसने जिओ को इन टावर का निरंतर फायदा मिलते रहे इसके लिए इन टावर्स को एक अलग कम्पनी बना कर उसमे डाल दिया गया

मोबाइल टॉवर किसी भी टेलीकॉम ऑपरेटर के लिए सबसे महत्वपूर्ण संपत्ति होते हैं इस कदम का परिणाम यह हुआ कि अब बीएसएनएल को भी इन टावर की  सर्विसेज यूज करने का  किराया लगने लगा, यह निर्णय 2017 में मोदीं सरकार ने लिया था जिससे बीएसएनएल अपने ही टॉवरों की किराएदार बन गयी

नतीजतन जो कम्पनी 2014-15 में 672.57 करोड़ रुपए के फायदे में आ गई थी इस निर्णय के बाद हजारों करोड़ रुपए का घाटा दर्शाने लगी

कुछ समझे आप सरकार ने बीएसएसएल को  4जी स्पेक्ट्रम अलॉट भी नही किया और उसे बीएसएनएल के टावर भी दिलवा दिए और BSNL को अपनी संपत्ति का किराएदार बना दिया

लेकिन सरकार यही नही रुकी उसने उन राज्यों में जहाँ उसकी सरकार थी वहां ऐसी पॉलिसी बनाई जिससे जिओ को फायदा पुहंचे ओर बीएसएनएल को कोई मौका नहीं मिले

छत्तीसगढ़ की रमन सिंह सरकार ने एक योजना शुरू की जिसे संचार क्रांति योजना कहा गया 2011 में छत्तीसगढ़ में मोबाईल की पहुंच 29 प्रतिशत थी। छत्तीसगढ़ की विषम भौगोलिक परिस्थितियों एवं कम जनसंख्या घनत्व के कारण दूरसंचार सेवा प्रदाता कंपनियां राज्य में नेटवर्क का विस्तार नहीं कर पा रही थी

संचार क्रांति योजना के तहत इन क्षेत्रों में टेलीकॉम प्रदाता कंपनी द्वारा नेटवर्क कनेक्टिविटी प्रदाय किये जाने हेतु अधोसंरचना तैयार की जानी थी और 1500 से अधिक नये मोबाईल टॉवर लगाये जाने थे 600 करोड़ रुपये मोबाइल टावरों की स्थापना पर खर्च किये जाने थे, यानी सारा काम सरकारी खर्च पर किया जाना था यह ठेका बीएसएनएल के बजाए जियो को दिया गया

इस तरह से BSNL को पूरी तरह से बर्बाद करने की दास्तान लिखी गयी

गुरुवार, 9 जून 2016

Udta Punjab उड़ता पंजाब

मानिए या न मानिए, मुझे नहीं पता ड्रग कितना फैला है पंजाब में लेकिन इतना जरूर पता है कि मेरे इतने सारे पंजाबी दोस्त में कोई सेवन नहीं करता; न ही कभी किसी ने ऐसी कोई कहानी ही बताई। हाँ ऐसा भी नहीं होगा कि ऐसी कोई समस्या न हो।
लेकिन ऐसी फ़िल्मी विवाद का अगर सबसे ज्यादा टारगेट रहा है तो वो है बिहार। कभी ऐसे ही किसी कानूनी समस्याओं को लेकर बिहार पर एक फ़िल्म बन गई और देखते ही देखते इतने सारे फिल्मो में बिहार को गया गुजरा दिखा दिया गया।
मुझे नहीं पता कि बिहार से कितने मज़दूरों का पलायन दक्षिणी भारत होता है लेकिन उनकी कोई भी डब्ब किया हुआ फ़िल्म देखिये तो मज़दूर और गुंडे सब बिहारी ही होते हैं। अब जाकर कुछ फिल्में बनना शुरू हुई जो बिहार के दूसरे पहलु को दिखता हो।
कहीं ये हाल पंजाब का न हो कि नशा का टैग जुड़ जाए। इतना तो जरूर है कि इससे समस्या तो ख़त्म नहीं होनेवाली।

PS: इससे ये कतई जस्टिफाई नहीं होता कि सेंसर बोर्ड ने सही किया है। ये बस एक दूसरा पहलु है जो मन में आया तो लिख लिख दिया।

#UdtaPunjab

बुधवार, 9 सितंबर 2015

बिहार चुनाव को लेकर मेरी कुंठाएं

सब लोग बिहार चुनाव पर कुछ न कुछ बोले रहे हैं। मेरा भी मन करता है लेकिन चुप हो जाता हूँ ये सोचकर कि कोई जीते कोई हारे किसी को क्या लेना देना। सभी नेतागण अपनी अस्तित्व बचानेे में लगे हुए हैं।
आज मुझसे भी रहा नहीं गया तो सोचा कुछ कुंठाएं जो मन में है वो बोल ही देना चाहिए। सबसे पहली बात आती है विकल्प की कि कौन सा विकल्प बिहार के लिए अच्छा होगा। मेरे समझ से अभी नेताओं ने सारे विकल्प बंद कर दिए हैं अभी कोई विकल्प कम से कम बिहार के लिए तो सुयोग्य नहीं ही है। हाँ जिनकी पहुँच जहाँ तक है तो उनको फायदा होगा अगर उनके पहुँच वाले विकल्प चुनी जाती है। इन सभी घोषणाओं से पहले मेरे पास एक विकल्प झलक रहा था नितीश कुमार का लेकिन उनका ये गठबंधन ने उस उम्मीद को भी डुबो दिया। एक दूसरा विकल्प मिला भाजपा के रूप में तो उनकी सरकार हम केंद्र में देख ही रहे हैं पिछले एक साल से। सभी वादे जुमले का रूप लेता चला गया। हाँ वो समय के साथ हो ही जाया करती है।
कितनी अजीब विडम्बना है कि जिन कुसासनो से हटाकर प्रगति के पथ पर नितीश जी ने बिहार को एक उम्मीद दी आज उन्ही को अपना बराबरी की हिस्सेदारी दे रहे हैं। कितनी अजीब विडम्बना है की भाजपा के पास इतने उपयुक्त समय होते हुए भी जब वो बिहार को कुछ देकर लुभा सकते थे पिछले एक साल में वको अब जाकर घोषणा करनी पड़ रही है। पिछले एक साल में जितने वादों का जुमलकरण हो चूका है उस हिसाब से तो ये बहुत बड़ा जुमला लगता है। अगर पैसों की वजह से ही बिहार का विकास रुका हुआ था तो पिछले बजट में बहुत कुछ केंद्र सरकार दे सकती थी बिहार को और नितीश के मांग विशेष दर्जे में क्या बुराई थी।
कुल मिलाकर कहा जाए तो अगर नितीश जी अकेले मैदान में उतरते तो सबसे प्रबल विकल्प मेरी नज़रों में वी होते। और अगर पिछले एक साल में मोदी जी बिहार के लिए कुछ कर देते तो शायद उनकी भी जगह बन सकती थी। लेकिन अभी जो भी विकल्प है वो सब स्वार्थ निहित ही दिखाई पड़ रही है।
सरकार किसी की बने, चाहे किसी गठबंधन को ज्यादा सीटें मिल जाये या बाद में कुछ तोड़ जोड़ करके सरकार बने हाँ जैसे जम्मू में बना है, जनता को शायद निराशा ही हाथ लगेगी।